Sunday, March 1, 2009

तितली, बेटी और सुमन...!

देववाणी की शुरुआत के बाद आज पहली मर्तबा गद्य में लिख रहा हूं, पर बात ही कुछ ऐसी है कि लिखना ज़रूरी लग रहा है। दरअसल, बीते दो दिन में दो घटनाओं ने ऐसा जटिल सवाल खड़ा किया, जिसका जवाब ढूँढना मेरे बस में तो बिल्कुल भी नहीं। सोचा; आप से ही बतिया कर कुछ हल मिल जाये।

बीते शुक्रवार को राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर की एक अदालत ने सुमन नामक एक महिला के पति, सास-ससुर और दो जेठ को दस साल की सजा सुना दी। इन सभी ने सुमन को जिंदा जला दिया था। वैसे तो दहेज के लिए बेटियों का जलना-पिटना नई बात नहीं, लेकिन सुमन को जलाने वालों ने सिर्फ उसे ही नहीं, उसकी कोख में पल रही ढाई माह की जान को भी लालच की आंच में फूंक डाला। सात जन्म तक साथ निभाने और रक्षा करने का वचन भरने वाले पति ने उसके हाथ-पांव बांधकर आंगन में ला पटका तो सास-ससुर और जेठ ने केरोसीन डालकर ऐसे जला दिया, गोया सुमन कोई इंसान नहीं बल्कि घास की बनी मूरत थी और मालिकों ने गुस्से या मौज में उसे आग दिखा डाली। इस दौरान वे लोग ये तक भूल गए कि सुमन के गर्भ में एक शिशु की सासों का ताना-बाना भी बुना जा रहा है। ...और वह 'जीव' तो लेन-देन करने वाली इस दुनिया की रवायतें तक नहीं जानता। मगर, शिशु की किलकारी की बजाय उन्हें उस पैसे में खुशियां नज़र आ रही थी, जो सुमन लाती भी तो कमाकर नहीं, अपने पिता से मांग कर...।

खैर, ख़बर-नवीस के तौर पर अपने अखबार में यह ख़बर मुझे छापनी थी, सो दायित्व निभाया और जिस शनिवार को यह समाचार छपा उसी दोपहर घर के नजदीक ही एक अलहदा नजारा देखकर मन मुस्कुरा उठा। दरअसल, चार-पांच साल की एक बच्ची कहीं जा रही थी और मां के सुरक्षा संबंधी आदेश-निर्देश के कारण वह सड़क से लगती दीवार से चिपक कर चल रही थी। तभी एक खूबसूरत तितली कहीं से आई और बच्ची के इर्द-गिर्द मंडराने लगी। ऐसा लग रहा था मानो तितली ने उस नन्हीं बालिका को कोई फूल समझ लिया हो। उधर, वह नन्हीं कली तितली के इस स्नेह प्रदर्शन से डरकर ठिठक गई। यकीन जानिए यह दृश्य देखकर मुझे सीधे सुमन की याद हो आई और एक सवाल ने झिंझोड़ दिया कि फूल से भी संवेदनशील तितली और इससे भी अधिक सुकोमल होती हैं बेटियाँ; फ़िर बेटियों को लोग क्यूं जला देते हैं....???

हर तरफ ही देखिये मचता हुआ बवाल।

बेटी क्या इन्सां नहीं, अपना यही सवाल...।।।

4 comments:

Shikha Deepak said...

सुकोमल बेटियों को लोग क्यूं जला देते हैं....??? पैसे की भूख। ऐसे लोग इंसान के शरीर में शायद राक्षस हैं। वो दिखते तो इंसानों जैसे हैं पर उनमें इंसानियत नहीं होती।

समयचक्र said...

badhiya post. badhai
प्रहार: मेरे इस दिल को जब जख्म तुम ही देने लगे

Rajak Haidar said...

सबसे पहले तो गद्य में लिखने के लिए बधाई स्वीकारें. पहली पोस्ट से ही आपने दिलों की गहराई तक छू लेने वाले सवाल खड़े किए हैं. मुझे लगता है. दोनो घटनाएं अलग-अलग नहीं है बल्कि एक ही सिक्के के दो पहलु हैं. क्योंकि खुदा ने इस खुदाई में हर तरह की प्रवृति के प्राणी पैदा किए हैं. अदालत ने सुमन को पीड़ित करने वालों को सजा सुनाई यह अच्छी बात है. अब उन्हें तितली से संवेदनशीलता सीखनी चाहिए. आप इसी तरह लिखते रहें.

Imran Pathan said...

Good Dev..it's really touching my heart..