आईने भी सीख गए हैं दुनियादारी।
जैसी चाहें दिखलाएं तस्वीर हमारी॥
गुरु, मित्र और वैद्य कभी कहते थे कड़वा।
अब देते हैं मीठी गोली बारी-बारी॥
लो गिरकिट के रंग; लोमड़ी सी चालाकी।
बदलो तुम भी बदल रही है दुनिया सारी॥
छल, बल से ही ताज धराते हैं सिर पर।
मक्कारी का नया नाम है दुनियादारी॥
दूर रखा कालिख से मुझको तूने मालिक।
'देव' झुकाए शीश, कहे तेरा आभारी॥
- देवेश
Tuesday, February 24, 2009
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2 comments:
देवेश जी, कविता के माध्यम से आपने अपने अनुभव जाहिर किए हैं। मानते हैं इस दुनिया में कई बुरी चीजें हैं. झूठे, मक्कार और धोखेबाज लोग भी हैं, फिर भी मैं यह कहूंगा कि दुनिया बहुत खूबसूरत है.
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BHARAT KUMAR SUNDESHA
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