अजर अमर यह आत्मा, नश्वर है संसार।
सत्कर्मों से स्वयं का, करो जीव उद्धार॥
करो जीव उद्धार, फेर पछताते जग में।
अवसर जाता बीत, अश्रु रह जाते दृग में॥
कहत "देव" कविराय, मर्म यह जानो बंधु
सभी झिडकते हाथ, पकड़ते करुनासिंधु॥
- देवेश
कुछ बातें अनकही.....
नेह का धागा सुलगता, हे सखी!
क्रोध की अग्नि में जलता, हे सखी!!
मौन में नवगुण भले कहले कॊई!
मौन में विद्रोह पलता, हे सखी!!
चाल चौसर की चले शातिर कॊई!
समय ऎसी चाल चलता, हे सखी!!
क़द्र जानॊ वक्त की तॊ ठीक वरना!
वक्त बीते हाथ मलता, हे सखी!!
"देव" में दुर्गुण तॊ गुण भी देखिए!
क्या तुझे हर पल ही खलता, हे सखी!!
- देवेश