Friday, December 4, 2009

तनहाई

तुमने...

लहरों की तरह आकर,

छू लिया- किनारा मेरे मन का।

... और फिर चले गए,

लहरों की ही तरह....।

इस पर लिखी

मेरे सपनों की इबारत

घुल गई नमकीन पानी में ।

पीछे छूट गई,

एक नमी, खारापन और....

.... सिर्फ तनहाई ।।