Friday, March 20, 2009

प्रार्थना


मैं पानी तूं गंगाजल है,

मैं चिंगारी तूं पावक

तुझमें मिलूं बनूं तुझसा मैं

रहूं वृथा क्यों कहो विलग

जोड़-जोड़ अपने जैसा कर

मन। तन, जीवन में अमृत भर

आ-आ-आ सन्निकट आ

कर दे पावन आलिंगन कर

हे प्रभू! नहीं मैं तुझसा

और तुझसा भले ना हो पाऊं

और सत्य कहूं अपने मन का

तो तुझसा ना होना चाहूं

तूं मणिकांचन

अमरीक मणि

या स्वयं मणिधर का स्वामी

मैं कांच तुच्छ, टूटा-बिखरा

दर्शन में भी कहलाता पापी

तूं गुलाब, मैं महज शूल

तूं चंदन, मैं चरण धूल

तूं अमित तेज, मैं शुष्क दीप

पर तूं मोती गर

मेरा हृदय सीप

तूं रहे वहां दे छुअन मुझे

फिर अलग कहां पाऊं मैं तुझे

तो अब यह कर

बस राह दिखा

और अपना जान मुझे अपना

तेरे चरणों में प्राण तजूं

हे ईश! मेरा यही सपना...

1 comment:

मोहन वशिष्‍ठ said...

तुझमे ओम मुझमे ओम
सबमें ओम समाया है

सबसे कर लो प्रेम जगत में

कोई नहीं पराया है

बेहतरीन