आईने भी सीख गए हैं दुनियादारी।
जैसी चाहें दिखलाएं तस्वीर हमारी॥
गुरु, मित्र और वैद्य कभी कहते थे कड़वा।
अब देते हैं मीठी गोली बारी-बारी॥
लो गिरकिट के रंग; लोमड़ी सी चालाकी।
बदलो तुम भी बदल रही है दुनिया सारी॥
छल, बल से ही ताज धराते हैं सिर पर।
मक्कारी का नया नाम है दुनियादारी॥
दूर रखा कालिख से मुझको तूने मालिक।
'देव' झुकाए शीश, कहे तेरा आभारी॥
- देवेश
Tuesday, February 24, 2009
Thursday, February 19, 2009
मुक्तक
नेह के जल से तुम्हारे, चरण का अभिषेक कर लूँ।
मन मिला लूँ मन से तेरे, मन हमारे एक कर लूँ।।
कल्पना के चित्र सारे प्राण पा लें, जी उठें।
नाम बस तेरा पुकारूँ वचन का अतिरेक कर लूँ।।
- देवेश
मन मिला लूँ मन से तेरे, मन हमारे एक कर लूँ।।
कल्पना के चित्र सारे प्राण पा लें, जी उठें।
नाम बस तेरा पुकारूँ वचन का अतिरेक कर लूँ।।
- देवेश
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