Sunday, December 28, 2008

ग़ज़ल

आदर्शों की बात कहूं तो नादानी है।
अंधेरे को रात कहूं तो नादानी है।।
तुमको तुमसे, मुझको मुझसे फुर्सत कितनी।
फ़िर भी अपना साथ कहूं तो नादानी है।।
मरणासन्न देह में किसका रक्त चढ़ाया।
प्राण बचे फ़िर जात कहूं तो नादानी है।।
झूठे, नकली, दोहरे चेहरे वाले लोग।
इनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है।।
अपने करम भुगतने सबको पड़ते "देव"
इसे समय की घात कहूं तो नादानी है।।
- देवेश

Monday, December 15, 2008

सरस्वती-वंदना

श्वेत वसन धारण करती हो,श्वेत पद्म पर हो आसीन.

ज्ञान रश्मियां बिखराते हैं, कृपा प्राप्त कर मेधाहीन.

कवि-कोविद पूजा करते हैं और अर्चना देव महान.

ज्ञान-राशि दो मात शारदा, मांग रहा मैं सेवक दीन।

वीणा, पुस्तक, स्फटिक-मालिका, माता कर शोभित होती।

बुद्धि और विद्या की देवी भक्तों के दुःख हर लेती।

ज्ञानालोक प्राप्त कर जननी, सघन तिमिर को दूर करूं।

जिह्वा पर तुम सदा बिराजो अमृत बिन्दु छलकाती।

- देवेश