Tuesday, April 13, 2010

सानिया की शादी : मीडिया की राष्ट्रीय चिंता

कुछ दिन पहले खबर आई कि सानिया मिर्जा शादी करने वाली है। पाकिस्तानी 'किरकिटिए' (क्रिकेटर) शोएब मलिक पर वे दिल हार बैठी हैं। यह सुनकर हमें भी खुशी हुई।
चलो, सानिया को उसका असली दूल्हा मिल ही गया। अब आप पूछेंगे 'असली' कैसे? भई ये तो अपना 'गेस' (Guess) है। मुझे तो लगता है, सानिया ने पहले भी अब्बा हुजूर को शोएब के घरवालों से ही बात करने को कहा होगा। अब अपने यहां बेटियां खुलकर तो प्यार के बारे में बोलती नहीं। शर्माते-सकुचाते सानिया ने हौले से शोएब बोला और पापाजी सोहराब समझ बैठे। हमें तो पूरा लफड़ा इस मिलते-जुलते नाम का ही लग रहा है। ये ठीक वैसा ही है, जैसे अस्पताल वाले एक जैसे नाम के चलते गफलत खा जाते हैं। रोशनलाल की टांग टूटे तो प्लास्टर रोशन खान की टांग पर चढ़ा देते हैं। अब खान साहब भले ही दांत-दर्द की दवा लेने गए हों, उनकी कोई नहीं सुनेगा।
सानिया के वालिद साहब भी ऐसे ही 'कन्फ्यूज' हो गए होंगे। पर सानिया ने आखिर सोहराब को 'ठेंगा' दिखा ही दिया। बातें तो फिर खूब उठी बेचारी लड़की की, पर हुजूरे-आला आप ही बताइए कि आखिर कब तक मौन रहती सानिया? ...और फिर कोई एकाध दिन का तो मामला था नहीं। भई, सात जनम न सही, पूरी जिन्दगी तो गुजारनी ही पड़ती ना पट्ठे के संग।
अच्छा हुआ, जो वक्त पर बोल पड़ी। अब्बा-जान को भी गलती समझ आ गई। उन्होंने शोएब के घर रिश्ता भेजा और बात बन गई। इसीलिए खुशखबरी सुनकर अपने राम ने बधाई वाले एसएमएस भेज दिए, लेकिन ये खुशी रही नहीं ज्यादा दिन।
अपने दिल को दूसरा भारी झटका लगा। अब आप कहेंगे दूसरा झटका मतलब..? पहला कब लगा? अजी साहब! क्या बताएं...? पहला तो तब लगा था जब हमारी 'गर्लफ्रेण्ड' ने हमें सोहराब की तरह अकेला छोड़ दिया था। वो तो साफ बोली- तेरे जैसों को मैं खूब जानती हूं... शकल देखी है आईने में...। हम बेचारे क्या खाकर कुछ बोलते..? बड़ा दिल दुखा साहब। कई-कई मिन्नतें भी की हमने। पर वो नहीं मानी। खैर, हम तो तब से ठाले ही बैठे हैं, लेकिन किसी और की प्रेमकहानी को सफल होते देख हमारे जख्मों पर कुछ मरहम चुपड़ जाता है। इसलिए 'शोएनिया' ( सेफ-करीना= सेफीना, शोएब-सानिया=शोएनिया) की शादी पर थोड़े खुश थे हम, लेकिन शादी से पहले ही शोएब मियां का 'ऐब' तो 'शो' हो गया। वे तो पहले से शादीशुदा निकले और वो भी निजामों के श्हर में ही। नतीजा ये कि 'शोएनिया' की शादी के मुहूर्त में आएशा नाम का 'मंगल' अड़ गया।
'आएशा आपा' भी खुलकर बोली- मेरा पति सिर्फ मेरा है। ...और उनके बोलते ही 'खबरचियों' को मिल गया मसाला। भाई लोगों ने कैमरों के स्टैण्ड गाढ़ दिए सानिया के घर के सामने। अब शोएब मियां की तो जान सूख गई। सानिया ने भी गुहार लगाई- यह हमारे घर का मामला है। फैसला अदालत पर छोड़ दीजिए। अल्लाह की दुहाई भी दी, लेकिन टीवी वाले... इस 'मसाला-ममेंट' को कैसे छोड़ सकते थे। पलक झपकते ही टीवी की स्क्रीनें भर गईं 'त्रिकोणीय विवाह' की सनसनीखेज कहानियों से।
यहां मीडिया की 'पूर्वदर्शिता' ने हमारा दिल जीत लिया। अब आप फिर सवाल करेंगे कि ये 'पूर्व-दर्शिता' भला क्या है? तो हम पहले से ही 'क्लियर' कर दें कि 'पूर्वदर्शिता' का मतलब है- परिस्थिति को पहले से भांप लेना यानी सावधानी। अंग्रेजी में बोले तो- 'प्रूडेंस'। टीवी चैनल वालों ने इसी की मिसाल कायम की। कैसे...? तो देखिए, इन दिनों हमारा देश कितनी समस्याओं से जूझ रहा है। महंगाई, जिसका ग्राफ ऐसे ऊपर भाग रहा है, जैसे पागल कुत्ता पीछे पड़ा हो। फिर नक्सलवाद, आतंकवाद, जातिवाद और आरक्षणवाद बोनस में। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और प्रदूषण ने आम आदमी को उबाल रखा है। राजनीति तो खा रही हैं पूरे देश को। 'अपने-राम' को तो गिनती भी नहीं आती कि क्या-क्या गड़बड़ हो रही है यहां। ऐसी विकट स्थिति में हिन्दुस्तानी महिला खिलाड़ी की शादी और वह भी पाकिस्तानी से...। यह कितनी बड़ी समस्या है जनाब, आपको इसका अंदाजा भी नहीं होगा। भला हो न्यूज चैनल वालों का, जिन्होंने इस 'राष्ट्रविरोधी' गतिविधि से देशवासियों को आगाह किया।
हमको मालूम ही था। आप जरूर पूछेंगे ही कि इसमें 'राष्ट्रविरोधी' क्या है? बिल्कुल है साहब! आप तो जानते ही हैं कि हमारे देश में लड़कियों का टोटा है। अरे, टोटा नहीं होता तो हमारी गर्लफ्रेण्ड के जाते ही हमें दूसरी नहीं मिल गई होती। पर साहब, लड़कियां है ही नहीं हिन्दुस्तान में। सरकारी आंकड़े भी कहते हैं कि एक हजार पुरुषों पर नौ सौ और चिल्लर औरतें ही बची हैं इस देश में। अब इनमें से भी दुश्मन मुल्क के लोग आकर ले जाएंगे तो हिन्दुस्तानी कुंवारों का क्या होगा...? टीवी वालों ने इसी ज्वलंत समस्या को पेश किया है 'शोएनिया' के लफड़े में।
वैसे मुझे तो लगता है, इसमें भी जरूर पाकिस्तान की ही कोई साजिश है। खैर, अपन तो खुश हैं अभी चैनल वालों पर। बिल्कुल सही समय पर जगाया इस देश को। हालांकि 'राष्ट्रीय चिंता' के वक्त भी कई नासमझ ऐसे थे, जो टीवी वालों को कोस रहे थे। कहने लगे- देश में समस्याओं का अकाल पड़ गया है, जो दिन-रात सानिया, शोएब और आएशा को ही दिखा रहे हैं। लेकिन अपन ऐसे लोगों के लिए कुछ भी नहीं बोले। हमने तो बस न्यूज चैनल वालों को सलाम ठोका और उनके खिलाफ बोलने वालों की तरफ हिकारत भरी मुस्कान फेंक दी।
- देवेश