अजर अमर यह आत्मा, नश्वर है संसार।
सत्कर्मों से स्वयं का, करो जीव उद्धार॥
करो जीव उद्धार, फेर पछताते जग में।
अवसर जाता बीत, अश्रु रह जाते दृग में॥
कहत "देव" कविराय, मर्म यह जानो बंधु
सभी झिडकते हाथ, पकड़ते करुनासिंधु॥
- देवेश
कुछ बातें अनकही.....
1 comment:
देवेश जी, सच्ची बताऊं ये कविता तो मेरे ज्यादा पल्ले नहीं पड़ी. क्या करूं छोटी बुद्धि है ना...
Post a Comment