नेह का धागा सुलगता, हे सखी!
क्रोध की अग्नि में जलता, हे सखी!!
मौन में नवगुण भले कहले कॊई!
मौन में विद्रोह पलता, हे सखी!!
चाल चौसर की चले शातिर कॊई!
समय ऎसी चाल चलता, हे सखी!!
क़द्र जानॊ वक्त की तॊ ठीक वरना!
वक्त बीते हाथ मलता, हे सखी!!
"देव" में दुर्गुण तॊ गुण भी देखिए!
क्या तुझे हर पल ही खलता, हे सखी!!
- देवेश
3 comments:
Kamaal hai vyas ji....
Aap aur aapki sakhi dono salamat rahe...
Hey, its cool.................,
Ab batao kaha hey sakhi
अति सुन्दर. आप और आपकी सखी को हमारी ढेरों दुआएं. आपने लिखा है. "देव" में दुर्गुण तॊ गुण भी देखिए! मैंने सुना था कि देव में तो कोई दुर्गुण होता ही नहीं है. आपसे मिलकर यह बात साबित भी हो गई. फिर आपने यह क्यों लिखा ? खैर. अगली रचना पढ़ने के लिए हम आपका ब्लाग कब टटोलें...???
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