Sunday, December 28, 2008

ग़ज़ल

आदर्शों की बात कहूं तो नादानी है।
अंधेरे को रात कहूं तो नादानी है।।
तुमको तुमसे, मुझको मुझसे फुर्सत कितनी।
फ़िर भी अपना साथ कहूं तो नादानी है।।
मरणासन्न देह में किसका रक्त चढ़ाया।
प्राण बचे फ़िर जात कहूं तो नादानी है।।
झूठे, नकली, दोहरे चेहरे वाले लोग।
इनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है।।
अपने करम भुगतने सबको पड़ते "देव"
इसे समय की घात कहूं तो नादानी है।।
- देवेश

10 comments:

hem pandey said...

सुंदर गजल !

MANVINDER BHIMBER said...

bahut sunder gajal

Unknown said...

bahut hi sundar gajal!
dhanyvad!

"अर्श" said...

bahot khub likha hai aapne.......





arsh

Rajak Haidar said...

वाह-वाह क्या बात है. मुझे लगा इतनी अच्छी कविता पढ़कर कमेंट्स ना दूं तो यह मेरी नादानी है. लिखते रहें. हम कमेंट्स देते रहेंगे. आखिर कमेंट्स करना हम पाठकों का जन्मसिद्ध अधिकार है जो है.

Love : God's blessings said...

लिखते रहिये व्यास जी........

jogeshwar garg said...

achchhee ghazal hai devesh! chalate raho.

Unknown said...

JAISA KI MUJHE YAAD HAI KI APNE YEH GHAZAL MUJHE MID NIGHT MAIN SUNAI THI...VERY NICE..

jogeshwar garg said...

पहले ऊंची जात कहूं तो नादानी है
फिर अपनी औकात कहूं तो नादानी है
कैसे कह दूं दिन इन काली रातों को मैं
उजले दिन को रात कहूं तो नादानी है
जिनका चलन हूबहू खबरी चैनल सा है
उनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है
उसने मेरी कमियाँ मुझको गिनवाई थी
इसको भीतरघात कहूं तो नादानी है
लिखता है "देवेश" ग़ज़ल ऐसी "जोगेश्वर"
इसको अपनी मात कहूं तो नादानी है

Anonymous said...

पहले ऊंची जात कहूं तो नादानी है
फिर अपनी औकात कहूं तो नादानी है
कैसे कह दूं दिन इन काली रातों को मैं
उजले दिन को रात कहूं तो नादानी है
जिनका चलन हूबहू खबरी चैनल सा है
उनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है
उसने मेरी कमियाँ मुझको गिनवाई थी
इसको भीतरघात कहूं तो नादानी है
लिखता है "देवेश" ग़ज़ल ऐसी "जोगेश्वर"
इसको अपनी मात कहूं तो नादानी है