आदर्शों की बात कहूं तो नादानी है।
अंधेरे को रात कहूं तो नादानी है।।
तुमको तुमसे, मुझको मुझसे फुर्सत कितनी।
फ़िर भी अपना साथ कहूं तो नादानी है।।
मरणासन्न देह में किसका रक्त चढ़ाया।
प्राण बचे फ़िर जात कहूं तो नादानी है।।
झूठे, नकली, दोहरे चेहरे वाले लोग।
इनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है।।
अपने करम भुगतने सबको पड़ते "देव"
इसे समय की घात कहूं तो नादानी है।।
- देवेश
10 comments:
सुंदर गजल !
bahut sunder gajal
bahut hi sundar gajal!
dhanyvad!
bahot khub likha hai aapne.......
arsh
वाह-वाह क्या बात है. मुझे लगा इतनी अच्छी कविता पढ़कर कमेंट्स ना दूं तो यह मेरी नादानी है. लिखते रहें. हम कमेंट्स देते रहेंगे. आखिर कमेंट्स करना हम पाठकों का जन्मसिद्ध अधिकार है जो है.
लिखते रहिये व्यास जी........
achchhee ghazal hai devesh! chalate raho.
JAISA KI MUJHE YAAD HAI KI APNE YEH GHAZAL MUJHE MID NIGHT MAIN SUNAI THI...VERY NICE..
पहले ऊंची जात कहूं तो नादानी है
फिर अपनी औकात कहूं तो नादानी है
कैसे कह दूं दिन इन काली रातों को मैं
उजले दिन को रात कहूं तो नादानी है
जिनका चलन हूबहू खबरी चैनल सा है
उनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है
उसने मेरी कमियाँ मुझको गिनवाई थी
इसको भीतरघात कहूं तो नादानी है
लिखता है "देवेश" ग़ज़ल ऐसी "जोगेश्वर"
इसको अपनी मात कहूं तो नादानी है
पहले ऊंची जात कहूं तो नादानी है
फिर अपनी औकात कहूं तो नादानी है
कैसे कह दूं दिन इन काली रातों को मैं
उजले दिन को रात कहूं तो नादानी है
जिनका चलन हूबहू खबरी चैनल सा है
उनसे दिल की बात कहूं तो नादानी है
उसने मेरी कमियाँ मुझको गिनवाई थी
इसको भीतरघात कहूं तो नादानी है
लिखता है "देवेश" ग़ज़ल ऐसी "जोगेश्वर"
इसको अपनी मात कहूं तो नादानी है
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