एक अदना सा इंसान। राजस्थान के छोटे से कस्बे जालोर में जनवरी की एक सर्द सुबह आंख खोली। घर में पढ़ने-लिखने का माहौल पाया। नतीजा, 14 साल की उम्र में ही लेखनी पत्रकारिता के कठोर धरातल पर चलने लगी। उम्र का जो दौर मोहल्ले के बच्चों के बीच उधम मचाने का था, मैं अखबार के दफ्तर में बैठकर घटनाऒं की भीड़ में खबरें ढूंढा करता। तकरीबन युग भर (बारह साल की अवधि) से चल रहा यह पाषाण-कर्म सृजन की बदग़ुमानियों के साथ आज़ भी ज़िन्दा है।कहते हैं- जीवन के कठोर कर्म से तप्त मन को शीतल, सुखदायक, शांति की साँस लेने का अवसर साहित्य, संगीत आदि ललित कलाएं ही दे पाती हैं, लेकिन पत्रकारिता संस्थानों में काम करते हुए यह एहसास हुआ मानो मेरा कर्म किसी पारम्परिक ब्राह्मण का घर है और साहित्यिक भाषा, भाव, या छंदालंकार चांडाल से भी बड़े अछूत; जिन्हें यहां प्रवेश करने की तो क्या करीब से गुजरने तक की इज़ाजत नहीं है। ऐसे में अक्षरजननी की क्षुधा शांत करने का लालच ब्लॉग की इस रोचक, दिलचस्प दुनिया में खींच लाया। संतोष है कि देरी से ही सही सफ़र शुरू तो हुआ...।
4 comments:
وكان هذا حقا للاهتمام. كنت أحب القراءة
وكان هذا حقا للاهتمام. كنت أحب القراءة
(This was really interesting. I loved reading...)
सुन्दर छन्द..!
Dhnyawad sir
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