आज महीनों बाद लिखने का मन किया है। कुछ ज्ञात-अज्ञात कारण भी हैं इसके पीछे। वैसे भी यह काम किसी और के लिए साहित्य की सेवा, सरस्वती की उपासना, समाज को दिशा देने-दिखाने का प्रयास अथवा ऐसा ही कुछ हो सकता है, लेकिन मेरा ऐसे किसी उद्देश्य ऐसे किसी शब्द से कोई वास्ता नहीं है। मेरी तुकबंदियां मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ अपनी भावनाओं के इजहार का जरिया भर है। शब्दों के जाल में उलझना-उलझाना तब तक चलता रहेगा, जब तक मन में एहसास जिंदा हैं। फिलहाल इसे पढ़िए:-
चेहरे पे उसके अब वो उजाला नहीं रहा ।
मेहनत की रोटियों का निवाला नहीं रहा ।।
कल वो मिला था मुझको अर्से के बाद में ।
मिलने में मगर उसके रसाला नहीं रहा ।।
कुछ और फड़कती हुई खबर लाईए ।
'कलमाड़ियों' में कोई मसाला नहीं रहा ।।
- देवेश
8 comments:
kuch arse baad sahi par likhne ka man karte rehna chahiye...
bahut dino baad aapko padhaa. achhaa muktak hai.
Dhany ho Vyas ji..!!! Der aaye, Durust aaye..
sahi hai bhai.................
वाह देव! बहुत खूब लिखा है। कविताओं में खुद को बयां करने की तुम्हारी आदत तो पुरानी है। हम भी अब इसके आदी हो चुके हैं, लेकिन इतने दिनों तक नहीं लिखा इसे हम क्या मानें?
Wellcome back Dev. Now I'd like you to stay here. You're a good poet and writer indeed with a beautiful heart.
Keep writing Dev..!!!
Chehro ke ujaalon pe koi grahan laga hoga.
Mehnat ki roti ka vo akhiri nivaala hoga.
Arse baad hi sahi...mila to sahi aakhir.
Dil ke kisi kone me uske bhee ujaala hoga.
Fadakti khabaron ko kahan khoje Dev...
Har Google pe dalaalo ka deraa hoga... :-)
लिखता है ग़ज़ल खूब गर कुरेदिए उसे
"देवेश" को कुरेदने वाला नहीं रहा
Post a Comment