Wednesday, September 2, 2009

शाश्वत

वह था, है..., रहेगा,
मिट नहीं सकता वजूद उसका
ढांप ले भले ही अहं की चादर से...
ये तो था, है... और रहेगा,
यूं ही बरकरार...
हमेशा.... हमेशा....
- देवेश

1 comment:

jogeshwar garg said...

वाह ! देवेश !
गहरा दर्शन !