Tuesday, June 2, 2009

कोई समझ सके तो...




जिन्दगी अब मौत जैसी बन गई,

जी रहे हैं लाश बनकर हम यहां।

ख्वाब-अरमां-जुस्तजू जख्मी हुई,

आ! जरा तूं देख ले दिल का जहां॥
- देवेश

1 comment:

jogeshwar garg said...

ख्वाब-अरमां- जुस्तजू को आप मरहम कीजिये
भाव यह नैराश्य का देवेश! कुछ कम कीजिये
जिंदगी है मौत सी तो मौत में भी जिंदगी
फर्क है बस नज़रिए का जो भी आलम कीजिये